जिंदगी की कलम पकड़े तो जमाना बैठा हैं,

       तुम जज़्बात औैरो के लिख सको तो बात बने ।।

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Thoughts on life by great poets ..

       Things you should read about life ..



स्वर्ग में विचरण करते हुए
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए
विचलित से कृष्ण, प्रसन्नचित सी राधा
कृष्ण सकपकाए, राधा मुस्काई
इससे पहले कृष्ण कुछ कहते राधा बोल उठी -
कैसे हो द्वारकाधीश ?

जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन
कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया
फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया
और बोले राधा से ...
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!
आओ बैठते है ....
कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो
सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी

बोली राधा,
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे
जो तुम याद आते
इन आँखों में सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे
प्रेम के अलग होने पर तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको ?
कुछ कडवे सच ,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए
यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की
और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?
एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर
भरोसा कर लिया और
दसों उँगलियों पर चलने वाळी
बांसुरी को भूल गए ?
कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....
जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी
प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली, क्या क्या रंग दिखाने लगी
सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी
कान्हा और द्वारकाधीश में
क्या फर्क होता है बताऊँ
कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते
सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है
युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं
और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं
कान्हा प्रेम में डूबा हुआ आदमी
दुखी तो रह सकता है
पर किसी को दुःख नहीं देता
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो
स्वप्न दूर द्रष्टा हो
गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो
पर आपने क्या निर्णय किया
अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी?
और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया
सेना तो आपकी प्रजा थी
राजा तो पालक होता है
उसका रक्षक होता है
आप जैसा महा ज्ञानी
उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन
आपकी प्रजा को ही मार रहा था
आपनी प्रजा को मरते देख
आपमें करूणा नहीं जगी
क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे
आज भी धरती पर जाकर देखो
अपनी द्वारकाधीश वाली छवि को
ढूंढते रह जाओगे
हर घर हर मंदिर में
मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे
आज भी मै मानती हूँ
लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं
उनके महत्व की बात करते है
मगर धरती के लोग
युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं
प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं
गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है
पर आज भी लोग उसके समापन पर
"राधे राधे" करते हैं |

Unknown artist .

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             अजीब दास्तान है ज़िन्दगी ,                      

अजीब दास्तान है इस जिन्दगी की
ना जाने कितने मौको पर तकदीर बेवजह रूलाती है
जिसकी कभी कल्पना भी ना की हो जीवन में
ऐसे ऐसे अनोखे मंजर भी दिखाती है

जो कल तक हंसती थी जोर जोर से सांसे
वही आज सामने देखकर दुखो को कराहती है
जिसने कभी भी गलत ना किया किसी के भी साथ
उसके आंगन में भी आफतो की बारिश आ जाती है

जिन्दगी अजीब चीज है करके परेशान किसी को बेवजह
फिर दूर खड़ी खड़ी मुस्काती है
लूट कर किसी बेकसूर का सब कुछ
कभी भी ना अपने कामों पर पछताती है

सोचता रहता इंसान मजबूर होकर
क्या जिन्दगी सबसे साथ यूं ही निभाती है
देकर सबको थोड़ा या ज्यादा कष्ट
सबको जिन्दगी का असली मतलब समझाती है

रोना पड़ता है हंसते खेलते इंसानो को भी
जब जिन्दगी गमों की दुनियां से परदा हटाती है
दुख सुख मिलकर ही करते एक अदद जीवन का निर्माण
शायद ऐसा करके हर माहौल में जीना सिखाती है

जो सह जाता हर गम को हंसकर
फिर उसके जीवन में सदा बहारे ही बहारे आती हैं
छू भी ना पाता कोई गम उसके दामन को
फिर तो जिन्दगी इंसान को इतना ऊपर उठाती है

              नीरज रतन बंसल "पत्थर"

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अजीबो गरीब मंज़र  

ना जाने कितने अजीबो-गरीब मंजरो से भरी पड़ी है ये दुनिया
कुछ बातों को सोच सोच कर ही मन घबराता है
कोई ह्रदय को चीरने वाला मजर देखकर, एक पल तो दुखी होता है दिल
अगले ही क्षण कोई नया किस्सा देखकर खुश भी हो जाता है

होता है जन्म जब बेटे का
सबसे ज्यादा खुशी से एक बाप चिल्लाता है
होता है जब वही सपूत बड़ा
फिर वही बाप गिड़-गिड़ाता है

मदमस्त चंचल कोई बालक होता है जब अपनी मस्ती में
खुद तो झुमता है मस्ती मे साथ मेें अपनी मां को नचाता है
छुप छुप कर इधर उधर खेलता आंख-मिचौली
अनजाने में ही सही पर घर के कोने कोने को महकाता है

कर के देख लो चाहे किसी पर भी भरोसा जरूरत से ज्यादा
यहाँ दोस्त ही अपने दोस्त की नैया डुबाता है
हो जाती है यहां छोटी छोटी बेमतलब की बातो को लेकर सगे भाइयों में लड़ाई
फिर तो सगा ही सगे के रास्ते मे जाल बिछाता है

पाकर कोई खुशखबरी
यहां मस्त होकर जब कोई गुनग्नता है
बोलना तो बेचारें के बस में नही होता
अजीब अजीब हरकते करके सबको हसांता है

दिल टुटता है, लगता है उसे एक झटका
जब गरीब किसी अमीर के आगे अपने हक के लिये हकलाता है
अरे जिसके पास पैसे रखने की जगह नही वंही सबसे कठोर है यहां
एक दिन वही अमीर उसी पैसे की सोच में, चुपचाप रात के अंधेरे में मर जाता है

देखकर लंबी आलीशान गाडी किसी रईस की
गरीब का बच्चा जोर जोर से खिल-खिलाता है
जिनको पीने का पानी भी नसीब ना होता
कई कई दिनो तक उन पर करके दया,फिर उनको सावन खुद नहलाता है

कुछ को नसीब ना होती एक वक्त की भी रोटी
वही अमीर यहां बिना जरूरत के भी खाता है
आज तक समझ न आया मुझे
क्युं बेवजह इसांन खुद पर इतना इठलाता है
जरा सी भी चोट ना बर्दाशत होती उससे
रोज नए नए बहाने से भगवान इंसान को समझाता है

ध्यान से सुनो अ दुनियावालो
अमीर गरीब के बीच बढती जा रही है खाई
यह ज्ञान की बात तो हर एक ज्ञानी बताता है
पर मौका मिलता है तो भगवान बगैर आवाज किये
वह सबसे पहले जालिम बेदर्दी पैसे वाले को अपने पास वापस बुलाता है ।

             नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

                  

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