शक्ति स्वरूप की स्वयं अवतारी,
विक्राल सिंह की करे सवारी ।
जो खड्ग निरंतर पाप मिटाए,
वे कत्यानी माता कहलाए।।
👇👇👇👇
Navratri 2019 : छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा, जानें महत्व, पूजा विधि, माता कात्यायनी की कथा, मंत्र और आरती
Navratri 2019 शारदीय नवरात्रि 2019 में 29 अक्टूबर से आरम्भ हो रहे हैं, नवारात्रि (Navratri) के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा - अर्चना की जाती है, महार्षि कात्यायन ने आदिशक्ति की कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद मां ने उन्हें पुत्री रूप मे जन्म उनके यहां जन्म लेने का वरदान दिया था, ऋषि कात्यायन की यहां जन्म लेने के कारण ही मां को कात्यायनी (Goddess Katyayani ) नाम से जाना जाता है तो आइए जानते हैं माता कात्यायनी की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां कात्यायनी की पूजा विधि, देवी कात्यायनी की कथा, कात्यायनी का मंत्र और माता कात्यायनी की आरती
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। मां कात्यायनी (Maa Katyayani) ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। पहले मां ने महिषासुर का वध करके देवाताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। उसके बाद मां ने शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था और सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से छुड़ाया था। शारदीय नवरात्रि का पर्व (Shardiya Navratri Festival) इस साल 2019 में 29 सितंबर 2019 के दिन मनाया जाएगा। जिसमें छठे दिन देवी दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है तो आइए जानते हैं माता कात्यायनी की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व, मां कात्यायनी की पूजा विधि, देवी कात्यायनी की कथा, कात्यायनी का मंत्र और माता कात्यायनी की आरती
मां कात्यायनी का स्वरूप ( Maa Katyayani Ka Swaroop)
मां कात्यायनी ने महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसी कारण से ही इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। मां के स्वरूप की बात करें तो मां अत्याधिक कांतिवान है। देवी कात्यायनी का शरीर आभूषणों से सुशोभित है। मां कि चार भुजाएं हैं। जिनमें एक हाथ में कमल का पुष्प दूसरे हाथ में तलवार है और मां अपने दो हाथों से अपने भक्तों को आर्शीवाद दे रही हैं। मां शेर की सवारी करती हैं और उनका सिहं गर्जती हुई मुद्रा में है। मां कात्यायनी को देवी दूर्गा का ही छठा रूप कहा जाता है। इसलिए नवरात्र के छठे दिन मां कत्यायनी की पूजा अवश्य करें।
मां कात्यायनी की पूजा का महत्व (Maa Katyayani ki Puja Ka Mahatva)
मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह में आ रही सभी परेशानियां समाप्त होती है और उन्हें एक सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।। माना जाता है कि द्वापर युग में भी गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए मां कत्यायनी की ही पूजा की थी। अगर कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो मां कात्यायनी की पूजा करने से बृहस्पति के शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। मां कत्यानी की पूजा करने से आज्ञा चक्र जाग्रित होता है। जिसकी वजह से सभी सिद्धियों की प्राप्ति साधक को स्वंय ही हो जाती है। मां की उपासना से शोक, संताप, भय आदि सब नष्ट हो जाते हैं।
मां कात्यायनी की पूजा विधि ( Maa Katyayani Ki Puja Vidhi)
1.मां कात्यायनी की पूजा करने से पहले साधक को शुद्ध होने की आवश्यकता है। साधक को पहले स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
2. इसके बाद पहले कलश की स्थापना करके सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद ही मां कात्यायनी की पूजा आरंभ करनी चाहिए।
3.पूजा शुरु करने से पहले हाथ में फूल लेकर या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मंत्र का जाप करते हुए फूल को मां के चरणों में चढ़ा देना चाहिए।
4. इसके बाद मां को लाल वस्त्र,3 हल्दी की गांठ,पीले फूल, फल, नैवेध आदि चढाएं और मां कि विधिवत पूजा करें। उनकी कथा अवश्य सुने।
5. अंत में मां की आरती उतारें और इसके बाद मां को शहद से बने प्रसाद का भोग लगाएं। क्योंकि मां को शहद अत्याधिक प्रिय है । भोग लगाने के बाद प्रसाद का वितरण करें।
मां कात्यायनी की कथा (Maa Katyayani Ki Katha)
पौराणि कथा के अनुसार महार्षि कात्यायन ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। मां का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में ही हुआ था। मां का लालन पोषण कात्यायन ऋषि ने ही किया था। पुराणों के अनुसार जिस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था। उस समय त्रिदेवों के तेज से मां की उत्पत्ति हुई थी। मां ने ऋषि कात्यायन के यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। इसके बाद ऋषि कात्यायन ने उनका तीन दिनों तक पूजन किया था।
मां ने दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत किया थाइसके बाद शुम्भ और निशुम्भ ने भी स्वर्गलोक पर आक्रमण करके इंद्र का सिंहासन छिन लिया था और नवग्रहों को बंधक बना लिया था। अग्नि और वायु का बल पूरी तरह उन्होंने छीन लिया था। उन दोनों ने देवताओं का अपमान करके उन्हें स्वर्ग से निकल दिया था। इसके बाद सभी देवताओं ने मां की स्तुति की इसके बाद मां ने शुंभ और निशुंभ का भी वध करके देवताओं को इस संकट से मुक्ति दिलाई थी। क्योंकि मां ने देवताओं को वरदान दिया था कि वह संकट के समय में उनकी रक्षा अवश्य करेंगी।
मां कात्यायनी के मंत्र (Maa Katyayani Ke Mantra)
1.या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
2.ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः
3.कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी।
नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
4.चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।
मां कात्यायनी की आरती (Maa Katyayani Ki Aarti)
जय कात्यायनि माँ, मैया जय कात्यायनि माँ ।
उपमा रहित भवानी, दूँ किसकी उपमा ॥
मैया जय कात्यायनि....
गिरजापति शिव का तप, असुर रम्भ कीन्हाँ ।
वर-फल जन्म रम्भ गृह, महिषासुर लीन्हाँ ॥
मैया जय कात्यायनि....
कर शशांक-शेखर तप, महिषासुर भारी ।
शासन कियो सुरन पर, बन अत्याचारी ॥
मैया जय कात्यायनि....
त्रिनयन ब्रह्म शचीपति, पहुँचे, अच्युत गृह ।
महिषासुर बध हेतू, सुर कीन्हौं आग्रह ॥
मैया जय कात्यायनि....
सुन पुकार देवन मुख, तेज हुआ मुखरित ।
जन्म लियो कात्यायनि, सुर-नर-मुनि के हित ॥
मैया जय कात्यायनि....
अश्विन कृष्ण-चौथ पर, प्रकटी भवभामिनि ।
पूजे ऋषि कात्यायन, नाम काऽऽत्यायिनि ॥
मैया जय कात्यायनि....
अश्विन शुक्ल-दशी को, महिषासुर मारा ।
नाम पड़ा रणचण्डी, मरणलोक न्यारा ॥
मैया जय कात्यायनि....
दूजे कल्प संहारा, रूप भद्रकाली ।
तीजे कल्प में दुर्गा, मारा बलशाली ॥
मैया जय कात्यायनि....
दीन्हौं पद पार्षद निज, जगतजननि माया ।
देवी सँग महिषासुर, रूप बहुत भाया ॥
मैया जय कात्यायनि....
उमा रमा ब्रह्माणी, सीता श्रीराधा ।
तुम सुर-मुनि मन-मोहनि, हरिये भव-बाधा ॥
मैया जय कात्यायनि....
जयति मङ्गला काली, आद्या भवमोचनि ।
सत्यानन्दस्वरूपणि, महिषासुर-मर्दनि ॥
मैया जय कात्यायनि....
जय-जय अग्निज्वाला, साध्वी भवप्रीता ।
करो हरण दुःख मेरे, भव्या सुपुनीता॥
मैया जय कात्यायनि....
अघहारिणि भवतारिणि, चरण-शरण दीजै ।
हृदय-निवासिनि दुर्गा, कृपा-दृष्टि कीजै ॥
मैया जय कात्यायनि....
ब्रह्मा अक्षर शिवजी, तुमको नित ध्यावै ।
करत 'अशोक' नीराजन, वाञ्छितफल पावै॥
मैया जय कात्यायनि....
